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सीतामढ़ी जिले का स्वर्णिम इतिहास

न्यूज़ मिथिला : कभी सीता मड़ई और सीता मई या मयी कहलाती थी। कहा जाता है कि जगत जननी माता जानकी का जन्म या प्रकाट्य इसी स्थान में हुआ था। प्राचीन काल में यह मिथिला नगरी में पड़ता था। रामायण काल में कथा आती है कि राजा जनक के राज्य में अकाल पड़ गया। कई वर्षों से यहां वर्षा नही हो रही थी, तब राजा ने यहां आकर हल चलाया। हल जोतने के क्रम में मृद भांड के अंदर एक नवजात बच्ची मिली , जिसका नाम विदेह राजा जनक ने जानकी रखा। बच्ची के मिलते ही घनघोर वर्षा होने लगी। बच्ची को वर्षा से बचाने के लिए राजा ने तत्काल एक मड़ई यानी घर बनाने का आदेश दिया , जिसे सीता मढ़ी कहा जाता है। हल चलने के दौरान जहां बच्ची मिली , उस स्थान को पुनौरा के नाम से जाना जाता है। सीता मढ़ी रेलवे स्टेशन से पांच किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। पश्चिम में यह स्थान देश विदेश में प्रसिद्ध है। त्रेता काल के इस पवित्र स्थान के बारे में कई आख्यानों , शास्त्रों एवं पुराणों में इसका वर्णन मिलता है। यहां पुंडरीक ऋषि का कुंड भी है। आज से दो सौ साल पहले जब इस कुंड का जीर्णोद्धार हो रहा था, तब यहां से एक मूर्ति मिली। इसे उर्विजा कुंड कहते हैं। लोगों का कहना है कि मुख्य मंदिर में आज भी वही मूर्ति विराजमान है। पुनौरा के आसपास सीता माता से एवं राजा जनक से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं। जहां से राजा ने हल जोतना प्रारंभ किया , वहां पहले उन्होंने महादेव का पूजन किया था। उस शिवालय को हलेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां से 5 किलोमीटर की दुरी पर पंथ पांकर है। स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर बगही मठ है। यहां पर 108 कमरे बने हुए हैं। इस स्थान पर बड़े -बड़े यज्ञ किए जाते हैं। इसके पास ही देवकुली जिसे ढेकुली भी कहते है। कहते हैं यहां पर पांडवों की पत्नी द्रोपदी का जन्म द्वापर में हुआ था।

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