आखिर कब तक विद्यापति समारोह के नाम पर होता रहेगा चंदे का धंधा ?
संपादकीय। रोहित यादव : आज पुरे भारत वर्ष में मैथिलों द्वारा विद्यापति पर्व के नाम पर करोड़ों रूपये के खर्च किया जा रहा है। विडंबना यह है की साल भर में विद्यापति समारोह पर्व के नाम पर मैथिल समाज केवल दिल्ली एनसीआर में ही नही, बल्कि पुरे देश में करोड़ो रूपये साल भर में खर्च करते हैं। लेकिन इसकी उपयोगिता कहाँ तक है, यह चिंतन का विषय है। विद्यापति पर्व समारोह के मंच का राजनीति से प्रेरित होना और फूहड़ मैथिली भोजपुरी गीतों का अड्डा बनना, यह कहीं ना कही मिथिला मैथिली के नाम पर सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करने की यह परंपरा घातक सिद्ध हो रही है। पुरे भारत वर्ष में मिथिला मैथिली के नाम पर बने अलग-अलग विचारधाराओं के संगठनो द्वारा अलग अलग जगहों पर व्यापक स्तर पर इस तरह के समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसमे लाखों का खर्च आता है। ये लाखों रुपया मैथिलों से लेकर, राजनिति से जुड़े लोगो तक से चन्दा लेकर किया जाता है। जाहिर है मंच से उनलोगो को अर्थ ना सही लेकिन बहुत कुछ फ़ायदा भी मिलता होगा। दूसरे शब्द में कहे तो समारोह का व्यवसाय का रूप लेता जा रहा है। आयोजकों को इस तरह के आयोजन को अपने संस्कृति के रक्षा का नाम देकर लोगो से चन्दा लेते है, और मैथिल समाज भी ख़ुशी ख़ुशी आयोजक को बिना कुछ सोचे समझे मनमानी चन्दा भी देते हैं। आखिर क्यों ?? संभावित जवाब.. मिथिला विकास के लिये ?? विद्यापति समारोह से मिथिला का विकास होना रहा रहता तो आज मिथिला पिछड़ेपन में अव्वल नहीं रहता। इसके परे जब बात राज्य, भाषा और मिथिला की विकास की आती है तो वही मैथिल अपना पैर पीछे खींच लेते हैं। कारण है वह संस्था जो खुद को मिथिला हितैषी साबित करके हर महीने चन्दा का धंधा करती है। आपको यह जानकर हैरानी होगी की पुरे देश भर में मिथिला मैथिली के नाम पर 5 हजार से अधिक संस्था रजिस्टर्ड है जो की अलग मिथिला राज्य, मैथिलि को मिथिला में प्राथमिक शिक्षा की भाषा बनाने और मिथिला के विकास के उद्देश्य से बनायी गयी हैं। आज अधिकतम संस्था सिर्फ इसलिए बन्द है क्योंकि उसके सोच रहने के वाबजूद पास किसी भी प्रकार का आय का श्रोत नहीं है। किसी भी तरह का गतिविधि करने के लिए फण्ड नहीं है। प्रबुद्ध मैथिल समाज को एकबार इस दिशा में जरूर सोचने की जरूरत है.. आखिर क्यों साल में मिथिला विकास के लिये आंदोलन कम और विद्यापति समारोह ज्यादा होता है ?? क्या हम इस प्रकार विद्यापति, लोरिक, सलहेस को जीवंत रख पायेंगे ?? क्या हम इस तरह मिथिला को विकसित कर पायेंगे ??
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