एक "झा" जो तय करता है देश का हैडलाइन।
देश में ख़बरों और मुद्दों का अजेंडा न्यूज़ चैनल के वो चेहरे नहीं तय करते जिन्हे आप स्क्रीन पर देखते हैं. देश का अजेंडा वो अख़बार भी नहीं गढ़ते हैं जो पत्र के साथ मित्र भी है या फिर रियल एस्टेट का व्यापार करते हैं. देश का अजेंडा ये व्यक्ति सेट कर रहा है जिसकी तस्वीर ऊपर लगी है. एक बार तस्वीर पर फिर से गौर करें. टीवी की बहस पर ये चेहरा आपने नहीं देखा होगा. किसी नेता के साथ या सेलिब्रिटी पार्टी में भी ये चेहरा आपको नहीं दिखा होगा. तो पहले जानिए इनका नाम ....इन्हे राजकमल झा कहते हैं.
कौन हैं घुंगराले बाल वाला राज कमल झा ?
अगर आप किसी अख़बार या चैनल में पत्रकार नहीं हैं तो झा साहब को नहीं जानते होंगे. झा साहब IIT खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र रहे जिन्होंने बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ कैलिफ़ोर्निया से प्रिंट जर्नलिज्म में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. आज की तारीख में 49 वर्षीय झा देश के सबसे तेवर वाले अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक है. सच ये है कि इनके खोज ख़बरों से सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली घबराते हैं. इनके अख़बार को रोज़ सुबह पीएम मोदी भी पढ़ते हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि इनके अख़बार में सुबह छपी ख़बरों को ही दिन भर न्यूज़ चैनल फॉलो करते हैं.
कैसे करते हैं देश का एजेंडा सेट राजकमल झा ?
दादरी काण्ड की एक्सक्लूसिव खबर राष्ट्रीय मीडिया में इंडियन एक्सप्रेस ने ब्रेक की थी. जो खबर रीजनल अख़बारों के मेरठ एडिशन में दब गई उसे झा ने अपने रिपोर्टर्स की टीम से कवर करवाया और बाद में यही खबर देश का मुद्दा बन गया. पनामा पेपर्स घपले में फंसे अमिताभ बच्चन और कई बड़े उद्योगपति की खबर भी झा की इनवेस्टिगेटिव टीम को लीड कर रही रितु सरीन ने ब्रेक की थी. इससे पहले ब्लैक मनी पर भारतीयों के स्विस अकाउंट की बड़ी खबर को भी इंडियन एक्सप्रेस ने ब्रेक किया था. पुरस्कार वापसी की शुरुआत हो या फिर रोहित वेमुला पर खुलासा, झा के सम्पादकीय साम्राज्य में खबर जल्दी रूकती नहीं है. उन्होंने महाराष्ट्र में सूखे से लेकर पंजाब में कीटनाशक के घोटाले पर सबसे पहले फोकस किया. कोयला घोटाले और 2 जी स्कैम पर भी झा के रिपोर्टर्स ने बड़ी खोज ख़बरें की हैं.
किसी नेता से नहीं मिलते, कैमरे से दूर रहते हैं ?
गुडगाँव में रहने वाले राज कमल झा देर रात तक इंडियन एक्सप्रेस के केबिन में सुबह के संस्करण में जाने वाली हर खबर देखते हैं. उनकी अंग्रेजी का जवाब नहीं और हेडलाइंस बेमिसाल रहती हैं. रिपोर्टर्स को वो प्रेरणा देते हैं और इनवेस्टिगेटिव पत्रकारों को जिगर दिखाने की पूरी जगह. 2014 में जब शेखर गुप्ता का इंडियन एक्सप्रेस के मालिक से विवाद हुआ तो झा इंडियन एक्सप्रेस के चीफ बने. गुप्ता के जाने के बाद झा ने मीडिया की गिरती साख को बचाने की हर मुमकिन कोशिश की है हालाँकि इधर सरकार का एक्सप्रेस ग्रुप के मालिकों पर दबाव बढ़ा है. सूत्र बताते हैं कि एक्सप्रेस में इधर मोदी और अमित शाह पर सीधा हमला कम हुआ है लेकिन बाकी मंत्रियों को अभी भी बक्शा नहीं जा रहा. झा के रिपोर्टर्स ने जब 25 लाख की सरकारी SUV इस्तेमाल कर रहे केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेडकर को एक्सपोस किया तो PMO के कहने पर जावेडकर को SUV लौटानी पड़ गई. ऐसा कहा जाता है कि झा किसी नेता से नहीं मिलते. पावर ब्रोकर्स के साथ गलबहियां करने वाले एक्सप्रेस के पूर्व संपादक शेखर गुप्ता और प्रभु चावला से काफी अलग हैं झा. उन्हें वीर संघवी की तरह सेलिब्रिटी स्टेटस पसंद नहीं और अर्नब गोस्वामी जैसे 70 mm अवतार में वो विश्वास नहीं रखते.
क्या खूबी है क्या खामी है झा में ?
हार्ड कोर पत्रकारिता के अलावा झा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के नॉवेलिस्ट भी हैं. उनके उपन्यास 'द ब्लू बेडस्प्रेड ' को कामनवेल्थ राइटर्स प्राइज मिला जबकि उनकी चौथी किताब 'शी विल बिल्ड हिम आ सिटी " आधुनिक भारत के उतार और चढ़ाव पर लिखी गई है जिसे नए दौर का सबसे अच्छा अंग्रेजी उपन्यास बताया जा रहा है. लेकिन इन खूबियों के अलावा झा के बारे में कुछ मान्यताएं भी हैं. बीजेपी समर्थक उन्हें लेफ्ट सोच वाला संपादक मानते हैं . कांग्रेस नेता संजय झा के कज़िन होने के नाते उन्हें आज के दौर में थोड़ा से कांग्रेस के प्रति हमदर्दी रखने के लिए कोसा जाता है. IIT खड़गपुर के छात्र होने के कारण उन्हें कॉलेज के एलुमिनी अरविन्द केजरीवाल का भी पक्षधर कहा जाता है. लेकिन झा के एक सहयोगी कहते हैं कि ये आरोप निराधार हैं. राज कमल हमेशा से एंटी-इस्टैब्लिशमेंट संपादक रहे और बहाव के साथ कभी बहते नहीं देखे गए. इंडिया संवाद की टीम राज कमल झा की राजनीतिक सोच पर टिप्पणी नहीं करना चाहती लेकिन टीम मानती है कि वो देश के बड़े सम्पादकों में सबसे धारदार हैं और आज की परम्परागत चमक धमक से दूर रहने वाले एक अपवाद. बेशक, ख़बरों का बाजार उनके हाथ में है लेकिन उनका चेहरा बाजार से गायब है. वो बड़े इसलिए हैं कि उन्होंने अपना चेहरा खुद बाजार से दूर रखने की कोशिश की है.
( साभार : दुर्गानाथ झा के फेसबुक वॉल से)
कौन हैं घुंगराले बाल वाला राज कमल झा ?
अगर आप किसी अख़बार या चैनल में पत्रकार नहीं हैं तो झा साहब को नहीं जानते होंगे. झा साहब IIT खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र रहे जिन्होंने बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ कैलिफ़ोर्निया से प्रिंट जर्नलिज्म में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. आज की तारीख में 49 वर्षीय झा देश के सबसे तेवर वाले अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक है. सच ये है कि इनके खोज ख़बरों से सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली घबराते हैं. इनके अख़बार को रोज़ सुबह पीएम मोदी भी पढ़ते हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि इनके अख़बार में सुबह छपी ख़बरों को ही दिन भर न्यूज़ चैनल फॉलो करते हैं.
कैसे करते हैं देश का एजेंडा सेट राजकमल झा ?
दादरी काण्ड की एक्सक्लूसिव खबर राष्ट्रीय मीडिया में इंडियन एक्सप्रेस ने ब्रेक की थी. जो खबर रीजनल अख़बारों के मेरठ एडिशन में दब गई उसे झा ने अपने रिपोर्टर्स की टीम से कवर करवाया और बाद में यही खबर देश का मुद्दा बन गया. पनामा पेपर्स घपले में फंसे अमिताभ बच्चन और कई बड़े उद्योगपति की खबर भी झा की इनवेस्टिगेटिव टीम को लीड कर रही रितु सरीन ने ब्रेक की थी. इससे पहले ब्लैक मनी पर भारतीयों के स्विस अकाउंट की बड़ी खबर को भी इंडियन एक्सप्रेस ने ब्रेक किया था. पुरस्कार वापसी की शुरुआत हो या फिर रोहित वेमुला पर खुलासा, झा के सम्पादकीय साम्राज्य में खबर जल्दी रूकती नहीं है. उन्होंने महाराष्ट्र में सूखे से लेकर पंजाब में कीटनाशक के घोटाले पर सबसे पहले फोकस किया. कोयला घोटाले और 2 जी स्कैम पर भी झा के रिपोर्टर्स ने बड़ी खोज ख़बरें की हैं.
किसी नेता से नहीं मिलते, कैमरे से दूर रहते हैं ?
गुडगाँव में रहने वाले राज कमल झा देर रात तक इंडियन एक्सप्रेस के केबिन में सुबह के संस्करण में जाने वाली हर खबर देखते हैं. उनकी अंग्रेजी का जवाब नहीं और हेडलाइंस बेमिसाल रहती हैं. रिपोर्टर्स को वो प्रेरणा देते हैं और इनवेस्टिगेटिव पत्रकारों को जिगर दिखाने की पूरी जगह. 2014 में जब शेखर गुप्ता का इंडियन एक्सप्रेस के मालिक से विवाद हुआ तो झा इंडियन एक्सप्रेस के चीफ बने. गुप्ता के जाने के बाद झा ने मीडिया की गिरती साख को बचाने की हर मुमकिन कोशिश की है हालाँकि इधर सरकार का एक्सप्रेस ग्रुप के मालिकों पर दबाव बढ़ा है. सूत्र बताते हैं कि एक्सप्रेस में इधर मोदी और अमित शाह पर सीधा हमला कम हुआ है लेकिन बाकी मंत्रियों को अभी भी बक्शा नहीं जा रहा. झा के रिपोर्टर्स ने जब 25 लाख की सरकारी SUV इस्तेमाल कर रहे केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेडकर को एक्सपोस किया तो PMO के कहने पर जावेडकर को SUV लौटानी पड़ गई. ऐसा कहा जाता है कि झा किसी नेता से नहीं मिलते. पावर ब्रोकर्स के साथ गलबहियां करने वाले एक्सप्रेस के पूर्व संपादक शेखर गुप्ता और प्रभु चावला से काफी अलग हैं झा. उन्हें वीर संघवी की तरह सेलिब्रिटी स्टेटस पसंद नहीं और अर्नब गोस्वामी जैसे 70 mm अवतार में वो विश्वास नहीं रखते.
क्या खूबी है क्या खामी है झा में ?
हार्ड कोर पत्रकारिता के अलावा झा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के नॉवेलिस्ट भी हैं. उनके उपन्यास 'द ब्लू बेडस्प्रेड ' को कामनवेल्थ राइटर्स प्राइज मिला जबकि उनकी चौथी किताब 'शी विल बिल्ड हिम आ सिटी " आधुनिक भारत के उतार और चढ़ाव पर लिखी गई है जिसे नए दौर का सबसे अच्छा अंग्रेजी उपन्यास बताया जा रहा है. लेकिन इन खूबियों के अलावा झा के बारे में कुछ मान्यताएं भी हैं. बीजेपी समर्थक उन्हें लेफ्ट सोच वाला संपादक मानते हैं . कांग्रेस नेता संजय झा के कज़िन होने के नाते उन्हें आज के दौर में थोड़ा से कांग्रेस के प्रति हमदर्दी रखने के लिए कोसा जाता है. IIT खड़गपुर के छात्र होने के कारण उन्हें कॉलेज के एलुमिनी अरविन्द केजरीवाल का भी पक्षधर कहा जाता है. लेकिन झा के एक सहयोगी कहते हैं कि ये आरोप निराधार हैं. राज कमल हमेशा से एंटी-इस्टैब्लिशमेंट संपादक रहे और बहाव के साथ कभी बहते नहीं देखे गए. इंडिया संवाद की टीम राज कमल झा की राजनीतिक सोच पर टिप्पणी नहीं करना चाहती लेकिन टीम मानती है कि वो देश के बड़े सम्पादकों में सबसे धारदार हैं और आज की परम्परागत चमक धमक से दूर रहने वाले एक अपवाद. बेशक, ख़बरों का बाजार उनके हाथ में है लेकिन उनका चेहरा बाजार से गायब है. वो बड़े इसलिए हैं कि उन्होंने अपना चेहरा खुद बाजार से दूर रखने की कोशिश की है.
( साभार : दुर्गानाथ झा के फेसबुक वॉल से)
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