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ओम पुरी के साथ सनोज मिश्रा की जुड़ी है कई दिलचस्प यादें


विक्रम भगत नागवंशी की रिपोर्ट:
मुम्बई। दिग्गज अभिनेता ओमपुरी का शुक्रवार सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वो 66 साल के थे। उनके आकस्मिक निधन से बॉलीवुड सदमे में है। पद्म श्री ओमपुरी ने 'अर्ध्य सत्य', 'धारावी', 'मंडी','गांधीगिरी' जैसी सैकड़ों फ़िल्मों में सशक्त अभिनय किया है। ओम पुरी ने अपने फ़िल्मी सफर की शुरुआत मराठी नाटक पर आधारित फ़िल्म 'घासीराम कोतवाल' से की थी। वर्ष 1980 में रिलीज 'आक्रोश' ओम पुरी के सिने करियर की पहली हिट फ़िल्म साबित हुई। ओम पूरी ने अपनी हिंदी सिनेमा करियर में कई सफल फ़िल्मों में अपने बेहतरीन अभिनय का परिचय दिया है। एक बिना फ़िल्मी परिवार से होने के कारण उन्हें हिंदी सिनेमा में अपनी जगह बनाने के लिए काफी कड़ा संघर्ष करना पड़ा। उन्हें हिंदी सिनेमा में अपनी बेहतरीन अभिनय के चलते कई पुरुस्कारों से भी नवाजा गया है। जानकारी के अनुसार उनकी आखिरी हिंदी फिल्म गांधीगिरी है। जिसके निर्देशक सनोज मिश्रा है

सनोज मिश्रा की जुबानी:-
मैं आज भी इस उम्मीद में हूं कि शायद वो फिर वापस जायें:- सनोज मिश्रा(निर्देशक)

उनके बारे में शब्दों में क्या लिखूंजब मुंबई आया तो सबसे पहले उनकी ही फिल्आस्थादेखी। उनको ही फॉलो किया और उनके ही साथ अंतिम फिल् रहीगांधीगिरी

अभी तीन दिन पहले ही मुलाकात हुई थी, उनके ही घर पर। उन्होंने ही बुलाया था। एक लाख का चेक बनाकर रखा था मेरे नाम का। मैंने पूछा कि ये किस बात का हैजवाब में कहा, ‘ ‘गांधीगिरीवालों ने तुमको पैसे नहीं दिये थे। तुमने मेहनत की 3 साल। ये मेरी तरफ से रख लो।मेरी आंखें भर आयीं। मैंने कहा, ‘आप मेरे लिए धरोहर हो। आपसे पैसे लेकर मैं खुद को क्या जवाब दूंगाबस आप आशीर्वाद दीजिए। मुझे आपका साथ चाहिए। आपका साथ बना रहे, इससे ज्यादा मुझे और कुछ नहीं चाहिए।उनके आखिरी शब्दों को मैं भूल नहीं पा रहा हूं। उन्होंने कहा था- ‘मैं कुछ भी लेकर नहीं आया हूं ना ही लेकर जाऊंगा।


मैंने उनसे अगली फिल् की डेट्स पर चर्चा की तो बोले कि एक-दो दिन में फाइनल बता दूंगा। मुझे छोड़ने वो बाहर तक आये। मुझे नहीं पता था कि ये हमारी आखिरी मुलाकात है। शूटिंग के समय सबसे पहले वो सेट पर पहुंचते और तैयार होकर सेट पर जाते। हमारी तैयारी पूरी नहीं होने पर हम सभी जल्दीजल्दी काम निपटाना चाहते, फिर भी वो नाराज नहीं होते थे। रात को वो तब तक डिनर नहीं करते, जब तक मैं शूटिंग खत् करके नहीं जाता। कभी-कभी तो मैंने देखा कि देर हो जाने पर वो बिना खाये ही सो गये। ना जाने क्यों इतना गहरा रिश्ता बना लिया था? मेरे लिए वो सबसे लड़ पड़ते थे कि सीधा लड़का है, परेशान मत करो।


एक दिन शिवगढ़ शूटिंग में मेरे असिस्टेंट ने गलती से दोपहर 2 बजे की बजाय उन्हें सुबह 10 बजे कॉल टाइम दे दिया। जब ये बात मुझे पता चली और मैंने उनको सेट पर आने से रोकने के लिए फोन लगाया, तो देखा कि पुरी साहब 80 किमी. का सफर तय कर चौराहे पर पहुंच चुके थे। मैं अपनी कार में छुप गया। मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया। सेट पर किसी को पाकर उन्होंने असिस्टेंट को कॉल कर कह दिया कि सनोज को बोल देना कि मैं फिल् छोड़कर जा रहा हूं। मैंने सारी तैयारी जल्दी-जल्दी करायी। फिर भी मुझे लगा कि फिल् बंद हो जायेगी। पुरी साहब वापस चले गये। दिल में आशंका थी, तनाव बहुत बढ़ गया था। फोन भी करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।


लेकिन 2 घंटे बाद पुरी साहब फिर वापस गये और बोले कि मैं गया ही नहीं था। दूर कार खड़ी करके तुम लोगों को देख रहा था। गुस्सा था, लेकिन सनोज को देखते ही मेरा गुस्सा शांत हो जाता है। पता नहीं क्या जादू सीखा है इसने? फिर सब खुश और शूटिंग चालू हो गयी।


अक्सर वो मुझे सुबह जल्दी बुलाते थे और इन दिनों तो कुछ ज्यादा ही इमोशनल हो चले थे। एक दिन मुझे बोले- मेरे साथ क्यों नहीं रहता? मैंने कहा- नये साल से आपके ही साथ रहूंगा। जाने-अनजाने लोगों को बीमार होने पर या ऑपरेशन की स्थिति में तो वो मदद करते ही थे, पढ़ाई में भी मैंने उन्हें मदद करते देखा है। बिना किसी पब्लिसिटी और मीडिया स्टंट के समय के पाबंद हर जाने अनजाने की सहायता करनेवाले, हर किसी का ध्यान रखनेवाले उस देवता से मिलने मैं आज कूपर अस्पताल गया इस उम्मीद में कि शायद वो फिर वापस जायें, लेकिन
संपर्क : विक्रम भगत नागवंशी










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