चीनी मिल चालू करवाने को लेकर कीर्ति आज़ाद ने सदन में उठाया आवाज़

बिकास झा : मिथिला क्षेत्र के बंद पड़े चीनी मिलों को चालू करवाने को लेकर आज सदन में दरभंगा के सांसद कीर्ति आज़ाद ने सवाल उठाया। अपने सवाल के दौरान आज़ाद ने कहा की "उत्तर बिहार ब्रिटिश काल से ही लोहट, रैयाम तथा सकरी में चीनी मिलें स्थापित थी, जिससे गन्ने की खेती फल-फूल रही थी। आज सभी चीनी मिलें बंद पड़ी है। जिसके कारन गन्ने जैसी नगदी फसल की खेती बंद है। मिलें बंद होने के कारण उत्तर बिहार के लोग बेरोजगार हो गए है। जिसके कारन वे पलायन कर दुसरे राज़्यों में मजदूरी करने को विवश है। आर्थिक रूप से सक्षम रहा उत्तर बिहार आज चीनी मिल व कारखाने बंद होने के कारण गरीबी, भुखमरी, पलायन, बेरोजगारी जैसी समस्या से जूझ रहा है। 
उत्तर बिहार के विकास के लिए आवश्यक है की बंद पड़ी चीनी मीलों को जल्द चालू कराया जाय, जिससे आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगा। गन्ना नगदी फसल होने के कारण किसान खेती में पूंजी लगाने में अग्रसर होंगे, जिससे कृषि में निवेश बढ़ेगा। उत्तर बिहार की मिट्टी, पानी और मौसम गन्ने की खेती के लिये अनुकूल है। गन्ना की खेती शुरू होने से मजदुर वर्ग का पलायन रुकेगा
जानकारी हो की इस समय चीनी मिल चालू करवाने को लेकर मिथिला स्टूडेंट यूनियन ने 28 मई से आंदोलन करने का घोषणा कर रखा है। इसका असर इस प्रकार देखा जा सकता है की जमीनी स्तर से लेकर सोशल साइट्स पर भी इसका जोरदार समर्थन मिल रहा है। जानकारी के अनुसार अभी तक 3300 से अधिक लोगो ने चीनी मिल के समर्थन में "मैथिल जन भरू हुंकार, चीनी मिल अपन अधिकार" स्लोगन के साथ प्रोफाइल पिक बदल चुके है। वहीँ यूनियन आंदोलन को लेकर जोर-शोर से प्रचार प्रसार कर रही है। 
मिथिला के चीनी मिल का एक अलग इतिहास रहा है। एक समय था जब देश के चीनी उत्पादन का 40 फीसदी चीनी बिहार से आता था, अब यह मुश्किल से 4 फीसदी रह गया है। आजादी से पहले बिहार में 33 चीनी मिलें थीं, अब 28 रह गई हैं। इसमें से भी 10 निजी प्रबंधन में चल रही हैं। जिनमें बगहा और मोतिहारी की स्थिति जर्ज़र हो चुकी है। जहाँ सकरी का अस्तित्व मिट चुका है और रैयाम चीनी मिल अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है वहीँ सबसे पुराना लोहट चीनी मिल अपने उद्धारक का इन्तजार कर रहा है। 

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