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दरभंगा के लाल ने किया कमाल इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्ड्स और लिम्का बुक ऑफ़ नेशनल रिकार्ड्स में कराया दर्ज


न्यूज़ डेस्क : कुछ अलग करने की चाहत सबके दिलों में होती हैं लेकिन ऐसा करने के लिए मनुष्य को एक अलग मानसिक युद्ध अपने ह्रदय और मस्तिस्क में लड़ना पड़ता है. अपने जीवन यापन के लिए किस उपक्रम को चुनेंगे, क्या व्यवसाय करेंगे, पारिवारिक और समाजिक परिवेश में लोग क्या कहेंगे, कहि असफल हो गए तो कैसी परिस्थिति होगी, इत्यादि तरह तरह के प्रश्नों का सामना करते हुए अपने सामने एक आत्मविश्वास से भरा स्वं का प्रतिरूप सृजन करना होता है जो इंसान के ह्रदय की गहराइयों में पल रही आकांक्षाओं और उत्कंठा को जीवित रखती है. अपने सोच और समझ के साथ निरंतर प्रयास करते हुए अपने आकांक्षाओं के साथ बढ़ते रहने से एक न एक दिन ऐसा अवश्य आता है जहां सब कुछ संभव हो जाता है. इंसान वह कर दिखाता है जो वह करना चाह रहा होता है.

कुछ ऐसा ही कर दिखाया बिहार राज्य के मिथिलांचल क्षेत्र दरभंगा, लीहेरियासराय, कविलपुर गाँव, के सुभाष चन्द्र झा ने. उन्होंने एक रिकॉर्ड समय में ठोस माध्यम में ध्वनि संचरण की गति के सिद्धांत के आधार पर एक मैकेनिकल हैडफ़ोन का निर्माण किया जो किसी बिना किसी इलेक्ट्रोनिक सिग्नल या बैट्री के काम करती है.
महज २० मिनट में इस उपकरण को बना कर उपयोग किये जाने के स्वरुप में समक्ष कर देने के लिए इनका नाम इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्ड्स और लिम्का बुक ऑफ़ नेशनल रिकार्ड्स में दर्ज किया गया है.
इस उपकरण का मुख्य उपयोग बच्चों के लिए एक वैज्ञानिक खिलौने के तौर पर किया जा सकता है और किसी वैज्ञानिक सिधांत का सहज, सरल और मनोरंजक प्रयोग क्या हो सकता है इस बात यह एक बहोत प्रेरक उदाहरण है.
श्री सुभाष अपने बचपन के दिनों से हि वैज्ञानिक खेलों और उपकरणों से तरह तरह कि चिजे बना बना कर अपना और अपने सहपाठी मित्रों को विस्मित और प्रेरित किया करते थे. बिहार के मध्यम वर्गीय परिवारों और समाज में सरकारी नौकरियों का बहोत प्रतिष्ठित स्थान है और इस प्रतिष्ठा को प्राप्त कारने का दवाब वहां के युवाओं में हमेशा विद्यमान रहती है लेकिन श्री सुभाष को सरकारी नौकरी प्राप्त कर प्रतिष्ठित होने की उत्कंठा कभी नहीं रही. हालाँकि अपने मन मुताबिक करियर विकल्प चयन करने के बावजूद, ऑटो मोबिल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के उपरांत इनका व्यावसायिक करियर कहि न कहि सामाजिक और पारिवारिक परिवेश के दवाब में परम्परागत और सामान्य हो कर रह गयी थी लेकिन इनके ह्रदय में हमेशा कुछ अलग और सफल करने की उत्कंठा बनि रही. जिंदगी के सामान्य व्यावसायिक दिनचर्या से कुछ अलग हट कर इन्होने वक़्त और परिस्थिति के चुनौतियों का सामना किया और अंततः कुछ ऐसा कर दिखाया जो उनके परिवार, समाज, राज्य और देश के लिए गर्व का विषय है.
शिक्षा और पढ़ाई लिखाई के प्रति समाज का परम्परागत नजरिया महज एक नौकरी प्राप्त कर लेने तक सिमित हो कर रह गया है. इस सोच के प्रति श्री सुभाष का दृष्टिकोण बहोत स्पष्ट और प्रेरक है की हमे शिक्षा को अपने सामान्य जीवन में सिधान्तिक मात्र न रखते हुए प्रायोगिक होना चाहिए. स्कूली पाठ्यक्रम के विषयों के सिधांत और सूत्रों को महज कंठस्थ करने के बजाय उनके मूलभूत आधार को समझने का प्रयास हो और उन सिधान्तों को प्रायोगिक कौशल का आधार बनाने से हम और ज्यादा विकसित और प्रबुद्ध युवा पीढ़ी का निर्माण कर सकते हैं.
वर्तमान में श्री सुभाष कुरुक्षेत्र में क्रिएटिव डिज़ाइन इंजीनियर के तौर पर स्वतंत्र रूप से अपना उपक्रम स्थापित कर रहे हैं और अपने हुनर और कला को और मजबूत तरीके से सबके समक्ष करने के लिए प्रयासरत हैं.