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सुशासन बाबू, शराबबंदी नहीं शराब महंगा हुआ है.. तो कैसी सफलता और कैसा 'मानव श्रृंखला' ?


रिपोर्ट : बीजे बिकास 
बिहार में शराबबंदी के सफलता को लेकर 21 जनवरी को राज्य स्तर पर मानव श्रृंखला निकाला जा रहा है। जिसमें बिहार के हर सरकारी स्कूलों से लेकर सरकारी दफ्तरों के कर्मियों को भी शामिल होने का निर्देश दिया गया है। लेकिन अब सवाल यह है की शराबबंदी की सफलता मापक केटेरिया क्या है ? यह सवाल इस कारन से भी अपनी मजबूती का परिचय देती हैं क्योंकि सीएम नीतीश कुमार के शराबबंदी के उपलक्ष्य में 21 जनवरी को होने वाली मानव श्रृंखला के एक दिन पहले यानी आज 20 जनवरी को भी बिहार का कोई ऐसा गांव-शहर नहीं है जहां शराब उपलब्ध नहीं है, भले ही शराब की कीमतों में शराबबंदी के पहले की शराब की कीमत की अपेक्षा दोगुना तिगुना दामों पर बिक रहा है, लेकिन शराब आज भी बिहार में धड़ल्ले से बिक रहा है। इस बात का प्रमाण पुलिसिया कार्रवाई से आप आसानी से लगा सकते है। शराबबंदी के बाद से हर दिन कहीं ना कहीं पुलिसिया कार्रवाई में शराब की खेपें बरामद होती आ रही है, जो की बदस्तूर जारी है। अगर आप इन दावों की जांच-पड़ताल खुद करना चाहते हैं तो बिहार के किसी भी शहर या गाँव में जाकर सामान्य नागरिक के वेश-भूषा में शराब ढूंढने की कोशिश कीजिये, आपकी कोशिश नाकाम नहीं होगी। तो फिर सवाल यह हैं की 'शराबबंदी' पर यह कैसी सफलता और कैसा मानव श्रृंखला ? बिहार में शराबबंदी कानून सख्ती से लागू हो गई, और शराब बेचना, खरीदना और पीना सभी अपराध हो गया। लेकिन कहीं ना कहीं सरकार की नीतियों में अभी भी कुछ खामियां हैं जिसके कारण बिहार में शराबियों के लिए शराबबंदी लागू होने के बाद भी शराब बंद नहीं हुआ है बल्कि महंगा हो गया है।